जबलपुर। जिले के कुंडम में आदिवासियों की जमीन को सामान्य वर्ग को बेचने के मामले में लोकायुक्त ने चार आईएएस अधिकारीयों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। ये अधिकारी 2007 से 2012 के बीच जबलपुर में पदस्थ थे।
इन्होंने आदिवासियों की जमीनों को बेचने के लिये अनुमति दी,जबकि भू राजस्व की धारा 165 ‘6’ में सिर्फ कलेक्टर को इस तरह की अनुमति देने का अधिकार है। ऐसे में जिला कलेक्टर ने भी विभागीय स्तर पर यह प्रभारी एडीएम को दे रखा था। एक तरह से तत्तकालीन कलेक्टर ने नियम के अनुरूप प्रक्रिया नहीं की। हालांकि लोकायुक्त ने अनुमति देने की अवधि में चार तत्कालीन एसडीएम के खिलाफ ही मामला दर्ज किया है। विगत माह मार्च में यह एफआईआर दर्ज की गयी थी जिसकी जांच तेजी से बढ़ रही है।
2015 में इस संबंध में लोकायुक्त भोपाल में शिकायत हुई थी, जिसमें शिकायतकर्ता ने प्रमाणों के साथ आईएएस अधिकारीयों के भ्रष्टाचार की पोल खोली थी। लोकायुक्त ने इस मामले में लोकायुक्त जबलपुर जबलपुर संभाग स्तरीय सतर्कता समिति को जांच दी। समिति ने 13 फरवरी 2023 को जांच रिपोर्ट लोकायुक्त को सौंपी, जिसमें इस पूरे मामले को एक सुनियोजित षड्यंत्र और सामूहिक भ्रष्टाचार बताया।
साल 2007 से 2012 के बीच क्रमश: एसडीएम दीपक सिंह वर्तमान में संभागायुक्त ग्वालियर चंबल संभाग, ओमप्रकाश श्रीवास्तव वर्तमान में आबकारी आयुक्त ग्वालियर, बसंत कुर्रे वर्तमान में उप सचिव मंत्रालय,और एमपी पटेल वर्तमान में सेवानिवृत्त पदस्थ थे। इन्होंने बिना जांच पड़ताल और नियमों का पालन किये बगैर ही अनुमति जारी की।
इस तरह के फिलहाल 13 मामलों की जांच लोकायुक्त कर रही है।
इन सभी अनुमति से जुड़े दस्तावेजों की फाइलें भी कलेक्ट्रेट से लोकायुक्त ने जब्त कर ली है।
आदिवासी की जमीन सामान्य वर्ग के व्यक्ति बेचने की प्रक्रिया जटिल है। कलेक्टर को जमीन के विक्रय करने वाले का उद्देश्य और खरीददार से संबंधित कारण में संतुष्ट होना आवश्यक है। ये आवश्यक है कि जिस जगह की जमीन है खरीददार भी वहीं का निवासी हो। जबकि इस अनुमति में जबलपुर और कटनी जिले के निवासी है। कलेक्टर की अनुमति में जमीन बेचने और खरीदने का प्रयोजन के साथ उद्देश्य पूर्ण हो रहा है कि नहीं यह भी सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है। ऐसा कुछ भी इस प्रक्रिया में नहीं हुआ।
बता दे कि कुल 13 प्रकरणों में से सर्वाधिक 7 मंजूरियां बसंत कुर्रे की तरफ से जारी हुई। इसके बाद 3 मामलों में ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने, 2 मामलों में एमपी पटेल और 1 मामले में दीपक सिंह ने जमीन हस्तांतरण की अनुमति दी थी।
आदिवासी की जमीन बेचने-खरीदने के षड्यंत्र में कुछ आदिवासी वर्ग के लोग भी शामिल थे। वे जरूरत बताकर आदिवासी से सस्ती जमीन खरीद लेते थे। आदिवासी होने की वजह से उन्हें अनुमति आवश्यक नहीं थी। बाद में छह माह से सालभर के बाद आदिवासी दलाल अलग-अलग तरह से पैसों की जरूरत का हवाला देकर जमीन का सौदा सामान्य व्यक्ति से करते थे। जिला प्रशासन से अनुमति की प्रक्रिया इन्हीं अधिकारियो के माध्यम से पूरी होती थी।
इस सौदे में जबलपुर, कटनी के कुछ व्यापारी शामिल है, जिन्होंने जमीन खरीदी।
प्रारंभिक जांच में ये सौदा 500 करोड़ रुपये के आसपास का होना बताया जा रहा है। जांच अधिकारियों ने कहा कि जांच सिर्फ 13 मामलों तक नहीं सीमित होगी। अन्य आदिवासी जमीनों को सामान्य व्यक्ति के बेचने संबंधी अनुमति की भी जांच की जायेगी।