जबलपुर। आयुध क्षेत्र में गन कैरिज फैक्टरी का स्थान देश में अग्रणी आयुध निर्माणियों में से एक है।
भारतीय थल सेना के लिए धनुष तोप, टी-72, टी-90 टैंक का निर्माण करने के बाद गन कैरिज फैक्टरी जल क्षेत्र में सीमा की रक्षा के लिए तैनात नौसेना के लिए कवच चैफ सिस्टम के स्पेयर पार्ट्स के उत्पादन में जुटी हुई है। साथ ही उत्पादन कार्य तेजी से किया जा रहा है। जिसकी असेंबलिंग तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली की एक अन्य आयुध निर्माणी में की जा रही है। वहीं से कवच चैफ सिस्टम नौसेना को आपूर्ति की जाती है।
गौरतलब है कि एडवांस वेपंस एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड (एवील) की आठ इकाई में से एक जीसीएफ काफी समय से कवच चैफ सिस्टम पर कार्य करती आ रही है। पूर्व डीआरडीओ के बनाए डिजाइन के अनुरूप इस पर कार्य आरंभ किया गया और समय के साथ इसमें अनेक बदलाव आए, जिससे इसकी क्षमता में काफी वृद्धि हुई।
सीमा क्षेत्र में हर दिन बदलती परिस्थिति के बीच इसकी डिजाइन इस तरह से तैयार की गई कि यह किसी भी मिसाइल अटैक पर नौसेना के पोत को तो बचाएगा, साथ ही साथ हमले का संकेत देते हुए हवा में ही मिसाइल का रूख बदल देने में सक्षम होगा।
2200 से अधिक अधिकारी व कर्मचारियों वाली जीसीएफ के पास कवच चैफ सिस्टम के स्पेयर बनाने में माहिर विशेषज्ञों की एक बड़ी टीम मौजूद है। जो इसे आकार दे रहे है। इसे बनाने में दो पालियों में कार्य होता है। स्पेयर बनने के बाद सीधे आयुध निर्माणी त्रिची भेजा जाता है ताकि असेंबलिंग के बाद इसे नौसेना को आपूर्ति किया जा सके। त्रिची भी एवील ग्रुप की एक इकाई है।
कवच चैफ सिस्टम दुश्मन के रडार से नौसेना के पोत को बचाता है, साथ ही दुश्मन के किसी भी मिसाइल अटैक के समय उसकी दिशा बदलने यह समक्ष होता है। यही कारण कि समुद्र में तैनात नौसेना के बेडे को किसी भी हमले से नुकसान नहीं हो पाता।
भारतीय नौसेना पहले सोवियत संघ से चैफ राकेट सिस्टम खरीदती थी। 1990 के दशक की शुरुआत में सोवियत संघ के विघटन के बाद आपूर्ति रुक गई।
आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) ने तब इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक चैफ रॉकेट प्रणाली को डिजाइन और विकसित करने का निर्णय लिया।
ओएफबी के मार्गदर्शन में दो प्रोटोटाइप बनाए गए, पहला परीक्षण सफलतापूर्वक किया है और सिस्टम को शामिल करने से पहले दूसरा और अंतिम परीक्षण किया गया जिसमें भी विशेषज्ञों को कामयाबी मिली।