साहित्यकार गुप्तेश्वर गुप्त के कलम से निकले बुंदेली लोकगीतों ने पूरे देश भर में मचाई धूम

DR. SUMIT SENDRAM

जबलपुर। करे भगत हो आरती माई दोई बिरिया…. यह सुप्रसिद्ध बुंदेली भजन आप सभी ने जरुर सुना होगा।
नवरात्री के पावन पर्व पर पूरे देश भर के दुर्गा पंडालो में यह भजन अवश्य सुनने को मिल जाता है।
इस बुंदेली लोकगीत की एक – एक पंक्ति में मानो देवी माँ दुर्गा साक्षात् सामने खड़ी है, और भक्त भावविभोर होकर माता की उपासना कर रहा हो।
इस बुंदेली भजन के रचयिता मध्यप्रदेश के संस्कारधानी जबलपुर के गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त है, जिनकी सृजन शीलता ही उनकी मूल पहचान है।
इस सुप्रसिद्ध बुंदेली लोकगीत की रचना कर वें 20वीं सदी से 21वीं सदी तक जस के तस विभिन्न पीढ़ियों के बीच समान रूप से लोकप्रिय बने हुए हैं।
07 अगस्त 1950 को दमोह जिले के हटा तहसील में दशरथ प्रसाद गुप्त के घर में इन महान रचनाकार जन्म हुआ।
हाई स्कूल तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त जबलपुर आ गए और यहीं रच बस गए।
मध्य प्रदेश राज्य विद्युत मंडल में शासकीय सेवा के साथ ही बुंदेली को एक अनूठी पहचान दिलाने में सक्रिय हो गए।
सहज, सरल व मृदुभाषी गुप्तेश्वर गुप्त मध्य प्रदेश राज्य विद्युत मंडल हिंदी परिषद के साहित्य सचिव रहे हैं।
इस दौरान उन्होंने विलुप्त होती लोक संस्कृति और परंपरागत लोकगीतों के लिए स्व- प्रेरित होकर बुंदेली लोकगीतों की 85 विधाओं का लेखन किया।
बुंदेली की लोकनाट्य परंपरा का लोक में अध्ययन, मनन एवं चिंतन कर ईशुरी, हंसा उड़ चल देश वीराने, भोले भैया जैसे नाटक बुंदेली में लिखे, जो नाट्य मंच के कलाकारों द्वारा समय- समय पर देशभर के नाट्य मंचों में प्रस्तुत किये गए।
डूब चलो दिन, माई डूब चलो दिन… बुंदेली लोकप्रिय भजन का भी गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त के कलम के श्रृंजन हुआ है।
बुंदेली की लोक संस्कृति एवं परंपरा को लेकर 65 पुस्तकों की पांडुलिपियां तैयार करने के बाद इनका लेखन का क्रम अभी जारी है।
इन्होने अपने कलम स्याही से 50 लोक नाटक, 500 गीत एवं 200 आलेख बुंदेली में लिखे।
वर्तमान में रचनाकार गुप्तेश्वर गुप्त बुंदेली वाचिक परंपरा के अंतर्गत बुंदेली लोक के विलुप्त होते बाल खेल एवं किशोरावस्था के खेल गीतों को केंद्र में रखकर कार्य कर रहे हैं।
आप ने सठोत्तरी हिंदी कहानी के महानायक ज्ञानरंजन की कहानी का नाटक रूपांतरण किया। साथ ही गुप्तेश्वर गुप्त जावरा नृत्य, ढिमरयाई, राई नृत्य आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम व प्रतियोगिताओं में शामिल होते रहे है।
इन महान रचनाकार का विभिन्न पत्रिकाओं में अनेक रचनाओं का प्रकाशन किया गया है।
हिंदी व बुंदेली में अपने कलम से लोकप्रिय रचनाओं के रचयिता गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त ने वर्ष 2003 में बुंदेली की पहली फिल्म “मोरो बेटो मोरो लाल” की पटकथा लिखकर बुंदेली साहित्य की श्रीवृद्धि और समृद्धि में योगदान दिया और बहुतचर्चित होने का गौरव अर्जित किया।
नर्मदा व आचार्य विद्यासागर जैसे महाकाव्यों की रचयिता डॉ. संध्या जैन श्रुति के अनुसार गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त की बुंदेली रचनाओं में प्रेम, श्रृंगार, हास-परिहास की मिठास है। वहीं, ग्रामीण परिवेश का चित्रांकन है। बुंदेलखंड की परंपराएं, तीज त्यौहार, खान-पान के विस्तृत ब्यौरे के साथ ही राष्ट्रप्रेम इनकी रचनाओं में देखने को मिलता है।

 

Next Post

अक्षत पॉली क्लीनिक के चिकित्सक की लापरवाही से मासूम आंचल की हुई थी मौत, चिकित्सक गिरफ्तार

सिंगरौली। जिले के चितरंगी अंतर्गत मासूम बालिका की मौत चिकित्सक की लापरवाही से हुई है। पुलिस ने फरियादी की रिपोर्ट पर आरोपी अक्षत पाली क्लीनिक के कथित चिकित्सक के विरूद्ध अपराध पंजीबद्ध कर आरोपी को घटना सूचना के 24 घण्टे के अन्दर गिरफ्तार किया है। चितरंगी थाना प्रभारी सुरेंद्र यादव […]